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शैलजा पैक: दलित महिलाओं की आवाज़, मैकआर्थर फैलोशिप की विजेता!

शैलजा पैक कौन हैं?

शैलजा पैक: दलित महिलाओं की आवाज़, मैकआर्थर फैलोशिप की विजेता! – शैलजा पैक, भारतीय-अमेरिकी इतिहास की प्रोफेसर, हाल ही में अपनी असाधारण उपलब्धि के कारण सुर्खियों में आई हैं। वे यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी की इतिहास की विशिष्ट रिसर्च प्रोफेसर हैं और ओहायो राज्य से मैकआर्थर फैलोशिप प्राप्त करने वाली 10 में से एक हैं। उल्लेखनीय है कि वे सिनसिनाटी और यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी से इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को प्राप्त करने वाली पहली व्यक्ति हैं।

शैलजा पैक: दलित महिलाओं की आवाज़, मैकआर्थर फैलोशिप की विजेता!

यह पुरस्कार 1981 में शुरू हुआ था और शैलजा पैक को इस “जीनियस” ग्रांट के रूप में $800,000 की राशि दी गई है। यह सम्मान उनके दलित महिलाओं के अनुभवों पर किए गए महत्वपूर्ण शोध कार्य के लिए दिया गया है, जिसमें उन्होंने इन महिलाओं की चुनौतियों और संघर्ष को उजागर किया है।

शैलजा पैक का जीवन संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों का डटकर सामना किया और अपने कड़ी मेहनत और समर्पण से एक बड़ा मुकाम हासिल किया। आज वे एक प्रेरणादायक शख्सियत हैं, जिनकी कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

शोध कार्य: दलित महिलाओं की आवाज़ को उजागर करना

शैलजा पैक के शोध कार्य में उन्होंने दलित महिलाओं के जीवन पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है। उनका शोध जातिगत उत्पीड़न और इसके दलित महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करता है। उनका काम मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित है कि कैसे लैंगिक और यौनिक विभेद इन महिलाओं की गरिमा को नष्ट करता है। शैलजा पैक ने अपने शोध में अंग्रेज़ी, मराठी और हिंदी के विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया है और इसके साथ ही उन्होंने समकालीन दलित महिलाओं के साथ साक्षात्कार भी किए हैं।

उनकी पहली किताब “दलित महिला शिक्षा और आधुनिक भारत: डबल डिस्क्रिमिनेशन” (2014) में उन्होंने यह दिखाया कि कैसे दलित महिलाओं को औपनिवेशिक और आधुनिक महाराष्ट्र में शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर भी रोशनी डाली कि कैसे समाज के पितृसत्तात्मक ब्राह्मणवादी आदर्शों ने दलित महिलाओं की शिक्षा के अधिकार को सीमित कर दिया।

शैलजा पैक की नवीनतम पुस्तक “द वल्गैरिटी ऑफ कास्ट: दलित्स, सेक्सुअलिटी, एंड ह्यूमैनिटी इन मॉडर्न इंडिया” (2022) में उन्होंने तामाशा, एक पारंपरिक लोक नाट्य रूप में दलित महिलाओं के जीवन पर ध्यान केंद्रित किया। तामाशा को एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसे अक्सर यौनिक श्रम के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने इस किताब में दिखाया है कि कैसे तामाशा कलाकारों को “अश्लील” माना जाता है और कैसे इन कलाकारों को अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

शैलजा पैक ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर के विचारों की भी आलोचना की, जो दलित महिलाओं पर आत्म-सुधार का दायित्व रखते हैं, जबकि यह उनके लिए कई चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।

शैलजा पैक का प्रारंभिक जीवन

शैलजा पैक का जन्म महाराष्ट्र के पोहेगांव में एक दलित परिवार में हुआ था। वे चार बेटियों में से एक थीं। उनका परिवार बाद में पुणे चला गया, जहां वे येरवाड़ा की एक झुग्गी में एक कमरे के घर में पली-बढ़ीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी, लेकिन उनके माता-पिता, विशेष रूप से उनके पिता, शिक्षा के प्रति बहुत जागरूक थे। उन्होंने अपनी बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने और समाज की कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमेशा प्रेरित किया।

शैक्षिक यात्रा और करियर

शैलजा पैक ने 1994 में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से स्नातक और 1996 में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 2007 में यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 2005 में उन्हें एमोरी यूनिवर्सिटी से फेलोशिप मिली, जिसके तहत वे पहली बार अमेरिका गईं।

उन्होंने यूनियन कॉलेज (2008–2010) में अतिथि सहायक प्रोफेसर के रूप में और फिर येल यूनिवर्सिटी (2012–2013) में अतिथि सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। 2010 से वे यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में फैकल्टी सदस्य के रूप में कार्यरत हैं और फिलहाल वहां चार्ल्स फेल्प्स टैफ्ट विशिष्ट रिसर्च प्रोफेसर ऑफ हिस्ट्री के रूप में सेवाएं दे रही हैं। इसके अलावा, वे महिला, लैंगिकता और समाजशास्त्र के अध्ययनों में भी संबद्ध सदस्य हैं।

मैकआर्थर फाउंडेशन ग्रांट: यह क्या है?

जॉन डी. और कैथरीन टी. मैकआर्थर फाउंडेशन एक निजी संगठन है जो दुनिया भर के करीब 117 देशों में गैर-लाभकारी संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है। इस संगठन की कुल संपत्ति $7.6 बिलियन है और यह प्रति वर्ष लगभग $260 मिलियन का अनुदान प्रदान करता है। इस फाउंडेशन की स्थापना 1978 में हुई थी और तब से यह 8.27 बिलियन डॉलर से अधिक का अनुदान वितरित कर चुका है।

मैकआर्थर फाउंडेशन का प्रमुख उद्देश्य उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जो असाधारण उपलब्धियों या क्षमता के धनी हैं। इसे “जीनियस ग्रांट” के नाम से भी जाना जाता है।

निष्कर्ष

शैलजा पैक का जीवन एक प्रेरणा है, जिसने अपने कठिन संघर्षों और बाधाओं को पार कर अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी रिसर्च न केवल दलित महिलाओं के जीवन को उजागर करती है, बल्कि इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करती है कि कैसे ये महिलाएं समाज के नियमों और रूढ़िवादी विचारों का सामना करती हैं। मैकआर्थर फैलोशिप प्राप्त करना न केवल उनके काम की सच्ची पहचान है, बल्कि यह उनके भविष्य की सफलताओं का एक मार्गदर्शन भी है।

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